Electoral Bonds Scheme पर सुप्रीम कोट ने लिया फैसला, राजनीतिक दलों को बड़ा झटका
Electoral Bonds Scheme: सरकार द्वारा शुरू एक स्कीम लागू की गई थी। जिसका नाम है। इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम योजना जो 2 जनवरी 2018 को सरकार द्वारा चलाई गई थी। इसका इस्तेमाल सिर्फ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम के तहत पंजीकृत राजनीतिक दलों को दान देने के लिए किया जाता है। केवल उन्हीं राजनीतिक दलों को इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिये चंदा दिया जा सकता है। जिनको लोकसभा या विधानसभा के लिए पिछले आम चुनाव में डाले गए वोटों का कम से कम एक प्रतिशत वोट हासिल हुआ हो।
चुनावी बॉन्ड्स की अवधि केवल 15 दिनों की होती है। चुनावी बांड एक वित्तीय साधन के रूप में काम करते हैं। जो व्यक्तियों और व्यवसायों को अपनी पहचान बताये बिना राजनीतिक दलों को आसान तरीके से धन योगदान करने की अनुमति देते हैं। भारत का कोई भी नागरिक या देश में निगमित या स्थापित इकाई चुनावी बांड खरीद सकती है।
लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर 15 फरवरी को अपना फैसला सुनाया और योजना को रद्द कर दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा “काले धन पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से सूचना के अधिकार का उल्लंघन उचित नहीं है। आज इस पोस्ट में हम आपको “Electoral Bonds Scheme” के बारे में पूरी जानकारी देने वाले है।
क्या है Electoral Bonds Scheme
इलेक्टोरल बॉन्ड एक योजना है। भारत सरकार ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की घोषणा 2017 में की थी। इस योजना को सरकार द्वारा 29 जनवरी 2018 को लागू किया गया था। इलेक्टोरल बॉन्ड राजनीतिक दलों को चंदा देने का एक साधन है। चुनावी बॉन्ड राजनीतिक पार्टियों को दिए जाने वाले चंदे से जुड़ा है। योजना के अनुसार, भारत का कोई भी नागरिक या व्यसायी अपना नाम बताये बिना किसी पार्टी को चंदा दे सकता है।
ये बॉन्ड भारतीय स्टेट बैंक की किसी भी शाखा से लिया जा सकता है। साथ ही ये दान ब्याज मुक्त होता है। दरअसल वित्तीय साधक के रूप मेें काम करने वाले चुनावी बॉन्ड के जरिए कोई व्यक्ति या व्यवसायी अपना नाम उजागर किए बिना किसी पार्टी को चंदा दे सकता है। जिनकी कीमत एक हजार सेे लेकर एक करोड़ रुपए तक होती है।
Electoral Bonds Scheme पर हुआ विवाद
इलेक्टोरल बॉन्ड पर कई नेताओ ने विवाद किया जिसमे कांग्रेस नेता जया ठाकुर, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और एनजीओ एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स समेत चार लोगों ने याचिकाएं दाखिल की। उन्होंने कहा की इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए गुपचुप फंडिंग में पारदर्शिता को प्रभावित करती है। यह सूचना के अधिकार का भी उल्लंघन करती है।
उनका कहना था कि इसमें शेल कंपनियों की तरफ से भी दान देने की अनुमति दी गई है। इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुनवाई पिछले साल 31 अक्टूबर को शुरू हुई थी। सुनवाई के लिए चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच में जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बी आर गवई, जस्टिस जे बी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं।
Electoral Bonds Scheme Offers Interest-Free Donations
इलेक्टोरल बॉन्ड योजना में व्यक्ति या संगठन द्वारा जो बॉन्ड खरीदा जाता है वो दान ब्याज मुफ्त है। जिनकी कीमत 1,000 से लेकर 1 करोड़ रूपये तक है। किसी भी व्यक्ति या संगठन द्वारा इन्हें भारतीय स्टेट बैंक की सभी शाखाओं से प्राप्त किया जा सकता है। ये दान ब्याज मुक्त भी हैं।
जब व्यक्ति या संगठन इन बांडों को खरीदते हैं। तो उनकी पहचान जनता या धन प्राप्त करने वाले राजनीतिक दल के सामने प्रकट नहीं की जाती है। उसको छुपा के रखा जाता है। लेकिन सरकार और बैंक फंडिंग स्रोतों की वैधता सुनिश्चित करने के लिए ऑडिटिंग उद्देश्यों के लिए क्रेता के विवरण का रिकॉर्ड बनाए रखते हैं।
Electoral Bonds Scheme पर सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा है। कि यह योजना RTI का उल्लंघन है। सरकार ने इस योजना से काले धन पर रोक लगाने की दलील की थी। सरकार ने दान करने वालो की पहचान को गोपनीय बताया है। लेकिन हम इससे सहमत नहीं हैं।
कोर्ट ने अपना फैसला सुनाते हुए आगे कहा कि चुनावी बॉन्ड योजना अनुच्छेद 19 के अनुसार, मौलिक अधिकार का हनन करती है। राजनीतिक लगाव के चलते भी लोग चंदा देते हैं। इसको सार्वजनिक करना सही नहीं होगा। इसलिए छोटे चंदे की जानकारी सार्वजनिक करना गलत होगा। किसी व्यक्ति का राजनीतिक झुकाव निजता के अधिकार के तहत आता है।
Electoral Bonds Scheme Benefits
इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के अनुसार ये बॉन्ड देश में जितने भी पंजीकृत राजनीतिक दल शामिल है उन सब को मिलता है। लेकिन इसके लिए सरकार ने कुछ शर्त रखी है। शर्त के अनुसार,उस पार्टी को पिछले आम चुनाव में कम से कम एक फीसदी या उससे ज्यादा वोट मिले हों।
ऐसी ही पंजीकृत पार्टी इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए चंदा पाने का हकदार होगी। सरकार के मुताबिक, इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए ब्लैक मनी पर रोक लगेगा। चुनाव में चंदे के तौर पर दिए जाने वाली रकम का हिसा किताब रखा जा सकेगा। इससे चुनावी फंडिंग में सुधार होगा। केंद्र सरकार ने अपने जवाबी हलफनामे में कहा कि चुनावी बांड योजना पारदर्शी है।
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Electoral Bonds Scheme के अनुसार पार्टियों को मिला फंड
इलेक्टोरल बॉन्ड योजना के अनुसार पार्टियों को चंदा मिला था। 2017 से 2021 के बीच 9 हजार 188 करोड़ रुपए का चंदा पार्टियों को मिला था। योजना के अनुसार, ये चंदा 7 राष्ट्रीय पार्टी और 24 क्षेत्रिय दलों के हिस्से में आया था। इस पांचों सालों में बीजेपी को 5 हजार 272 करोड़ रुपए और बीजेपी को 972 करोड़ रुपए मिले थे।
आज की इस पोस्ट में हमने आपको “Electoral Bonds Scheme” के बारे में जानकारी दी है। आशा करते है की आपको दी गयी जानकारी पसंद आई होगी।